Monday, 6 January 2025

आखिरी कदम.......

 रवि एक छोटे से गांव का साधारण छात्र था, लेकिन उसके सपने असाधारण थे। उसका सपना था देश की सबसे कठिन प्रतियोगी परीक्षा को पास करना। यह उसके और उसके संघर्षरत परिवार के लिए बेहतर भविष्य की कुंजी थी। लेकिन यह सफर आसान नहीं था।

हर सुबह रवि 5 बजे उठता और दिन का पूरा उपयोग करने का संकल्प करता। वह देर रात तक पढ़ाई करता, थकान और आत्म-संदेह से जूझता रहता। उसकी दीवारें फॉर्मूलों, उद्धरणों और उसके लक्ष्यों की याद दिलाने वाले चिपचिपे नोट्स से भरी थीं। फिर भी, उसकी मॉक टेस्ट के अंक शायद ही सुधरते।

एक शाम, एक और निराशाजनक परिणाम के बाद, रवि अपने पिता के पास गया, जो हमेशा चुपचाप उसका समर्थन करते थे। रवि ने कबूल किया, “मुझे नहीं लगता कि मैं यह कर सकता हूं, पापा। शायद मैं इतना होशियार नहीं हूं।”

उसके पिता ने हल्की मुस्कान दी और उसे खेतों में बाहर ले गए। उन्होंने उस कुएं की ओर इशारा किया जिसे उन्होंने सालों पहले खोदा था। उन्होंने कहा, “क्या तुम्हें याद है, हमने पानी तक पहुंचने से पहले कितनी बार सूखी ज़मीन पर वार किया था?”

रवि ने सिर हिलाया। “सौ से ज्यादा बार।”

“और क्या हमने पहले, दूसरे या पचासवें असफल प्रयास के बाद खोदना बंद कर दिया था?” उसके पिता ने पूछा।

“नहीं,” रवि ने स्वीकार किया।

“क्योंकि हर वार हमें पानी के करीब ला रहा था। सफलता भी ऐसी ही होती है, रवि। हो सकता है कि तुम्हें तुरंत परिणाम न दिखें, लेकिन हर प्रयास तुम्हें तुम्हारे लक्ष्य के करीब ला रहा है। असफलता केवल तब होती है जब तुम कोशिश करना बंद कर देते हो।”

पिता के ये शब्द रवि के मन में गूंजते रहे। उस दिन से, उसने अपने अंकों पर ध्यान देना बंद कर दिया और निरंतर प्रयास पर ध्यान केंद्रित किया। उसने अपनी पढ़ाई को छोटे हिस्सों में बांटा, छोटी-छोटी जीत का जश्न मनाया, और खुद को याद दिलाया कि हर पढ़ा गया पृष्ठ और हर हल की गई समस्या उसे उसके सपने के करीब ले जा रही है।

महीनों बाद, परिणाम घोषित हुए। रवि ने न केवल परीक्षा पास की, बल्कि शीर्ष उम्मीदवारों में अपनी जगह बनाई। उसकी आंखों में आंसू थे जब उसने यह खबर अपने पिता को दी।

रवि की यात्रा ने उसे—और अनगिनत अन्य लोगों को—सिखाया कि सफलता का रहस्य दृढ़ता है, पूर्णता नहीं। चाहे यात्रा कितनी भी कठिन क्यों न लगे, सफलता का कुआं आपकी उम्मीद से अधिक करीब है। खुदाई करते रहो।

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